Thursday, May 16, 2013

भारत निर्माण और मीडिया

....और भांड मीडिया लगातार बकवास करने में लगी पड़ी है. अब कोई रेल मंत्री का घोटाला, सी बी आई की स्वायत्तता, कोयला घोटाला और दुनिया भर के घोटालों की बात नहीं हो रही. संजय दत्त की पूरी जीवनी दिखा कर फूट फूट कर रोती हुई मीडिया ये भी नहीं दिखा रही कि वो जेल गया और जेल जाने के पीछे पूरा मामला क्या है.(वैसे कल से ज़रूर दिखाया जाएगा कि 'संजू बाबा' कब जगे, क्या खाया, उन्हें पेशाब किस रंग का हुआ,उन्हें क्या-क्या बीमारियाँ हैं जिनकी वजह से उन्हें जेल में तकलीफ हो रही है आदि-आदि). दिखाया जा रहा है तो आई पी एल में स्पॉट फिक्सिंग का मामला. क्रिकेट में फिक्सिंग एक ऐसा मामला है जिसमें कांग्रेस के एक वर्तमान सांसद जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मैच फिक्स किया था, कभी जेल नहीं गए. कोई सवाल नहीं उठा रहा कि वो साहब जेल क्यूँ नहीं गए थे. 

 थोड़ी देर में हम किसी न्यूज़ चैनल पर अँधेरे में बैठे किसी 'बुकी' को देखेंगे जो ये बताता होगा कि उसने कैसे और किन लोगों से मिल कर पहले मैच फिक्सिंग करवाई है. वो कहाँ-कहाँ मैच फिक्सिंग का धंधा करता है ताकि दर्शकों के बीच कोई सट्टेबाजी करना चाहे तो उसे तकलीफ ना हो. कुछ क्रिकेटर भी आ जायेंगे और आपस में बहस करके हमें ज्ञान देंगे कि किस तरह इस मामले से आई पी एल की लोकप्रियता पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

  कोयला घोटाले, टूजी घोटाले इत्यादि में जिस प्रकार ये बताया गया कि एन डी ए की सरकार ने इनकी पॉलिसी तय की थी इसलिए असली जिम्मेदारी या कम से कम साझा जिम्मेदारी तो वाजपेयी जी की बनती ही है और हमारा भांड मीडिया जिस प्रकार चीख चीख कर हमें ये बात सच मानने को मजबूर कर रहा था, उसी प्रकार अब सारा आरोप ललित मोदी पर लगा देना चाहिए.

  खैर भारत निर्माण के छोटे से बजट द्वारा मुख्या मुद्दों से ध्यान भटकाना ही उद्देश्य है. आज का उद्देश्य पूरा हुआ. सलाम मीडिया. 

Monday, September 15, 2008

आडवाणी जी आप से तो ऐसी उम्मीद नहीं थी

एक और बम विस्फोट से देश की राजधानी दहल उठी। इस विस्फोट में २४ लोग असमय काल के गर्त में समा गए। लोकतंत्र के चारों पहियों ने घुमना शुरू किया। सत्ता पक्ष अपनी जिम्मेदारियों बचता नजर आया तो विपक्ष ने आनन फानन में सत्ता पक्ष को चुनाव की चुनौती दे डाली। देश के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवानी ने विस्फोटों के बीच एक और विस्फोट कर दिया। जहां गृहमंत्री अपने परिधान बदलते रहे वहीं पूर्व गृहमंत्री भी अपने आगामी भविष्य के सुनहरे सपने बुनने शुरू कर दिए। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी अपनी जिम्मेदारी के निर्वाह में लग गया। कुकरमुत्ते की तरह फैले अपने नेटवर्क को सक्रिय कर 'ब्रेकिंग न्युज` का सिलसिला चल पड़ा। अखबारों केआफिस में फोन घिनघिना लगे और पेज भरे जाने लगे और थाे़डी ही देर में मानवीय संवेदनाएं बाजार में बिकने के लिए तैयार की जाने लगीं। अगले दो एक हफ्ते तक का मैटर मिल गया। पर इन सबके बीच जो एक बात सामने आई सभी ने इस बहती गंगा में अपने हाथ धोए। पिछले पांच दशकों तक देश की राजनीति में सक्रिय लाल कृष्ण आडवाणी ने ऐन मौके पर बयान देकर अपने दामन पर दाग लगा लिया है। जब एक ऐसा संदेश देने की जरूरत थी कि आतंकवादियों के हौंसले परास्त होते, ऐसे समय आडवाणी अपनी महत्वाकांक्षाआें की पूर्ति की योजना का अंजाम दे रहे थे। इस कारण अब हमें सोचने की आवश्यकता है कि या हम देश की बागडोर ऐसे गैरजिम्मेदार व्यि त को देने जा रहे हैं जो समय की मांग भी नहीं समझ सकता। निश्चित रूप से हमें यह कहना पड़ेगा कि आडवानी जी हमें आप जैसे वरिष्ठ नेता से यह उम्मीद नहीं थी।

Sunday, April 13, 2008

औचित्य

अभी कुछ दिन पहले हुए उच्चतम न्यायालय के एक ऐतिहासिक निर्णय को विभिन्न राजनैतिक दलों ने अपनी अपनी विचारधारा की जीत बताया है। किसी ने भी इस बात पर टिप्‍पणी नहीं की है की यह निर्णय भारत के नवनिर्माण में कितनी सहायता करता है। इस निर्णय में सब से ज़रूरी बात यह है की न्यायालय ने यह नहीं कहा है की भारत में आरक्षण नीति तर्क सांगत है या आवश्यक है। इस निर्णय में न्यायालय ने केवल सविंधान में संशोधन करने के भारत सरकार के अधिकार/ निर्णय को सही ठहराया है। अतः यह कहना कि उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण पर मुहर लगा दी है सैद्धांतिक रूप से ग़लत है। इस निर्णय के दूरगामी परिणाम अवश्य होंगे। पर हम यहाँ यह देखने का प्रयत्न कर रहे हैं कि आरक्षण का औचित्य क्या है? आरक्षण नीति का औचित्य था समाज के पिछडे/ दलित लोगों के उत्थान का। उत्थान शब्द शायद यहाँ उचित नहीं है, परन्तु फिर भी इस का औचित्य यही था कि समाज का जो वर्ग पिछड़ा और उपेक्षित था उसे आगे बढ़ने के समान अवसर दिए जाएँ, और चूँकि यह वर्ग अभावों में जी रहा था , अतः इसको आगे बढ़ने के लिए न्यूनतम अंक सीमा और आयु के मापदंडों में छूट दी गयी। लेकिन आज ६० वर्ष के बाद भी एक बार भी किसी भी सरकार ने यह जानने या बताने का प्रयत्न नहीं किया कि आरक्षण निति से कितने लोगों को लाभ हुआ। इस नीति कि राजनीति से कई सरकारें बनी और बिगडी, कई बार देश का भविष्य इस एक मुद्दे को लेकर अनिश्चितता में झूलता रहा। आरक्षण का औचित्य बहुत है लेकिन मेरी समझ में इसका औचित्य उन लोगों के लिए नहीं है जिन के लिए इसे लागू किया जाता है। इसका औचित्य उन लोगों के लिए अधिक है, जो उस आरक्षित जनता के भाग्य विधाता बन इस एक जलती लकड़ी से सालों तक अपने स्वार्थ कि रोटियां सेंकना चाहते हैं। एक बार मेरे एक गुरु डॉक्टर सूर्यस्वामी ने मुझ से कहा था -" राजनीति सार्वजनिक जीवन का शौचालय है " बहुत सटीक और सही लगती है यह बात जब भी आरक्षण पर हो रही राजनीति देखता हूँ। राजनीति कि बात कभी और करेंगे , यहाँ मुद्दा कुछ और है। मेरा मानना यह है कि जब आरक्षण का औचित्य उस वर्ग कि सहायता करना है जो कि अभी तक उपेक्षित थे तो ठीक है, परन्तु यदि एक व्यक्ति को आरक्षण मिला और वो उस से डॉक्टर अथवा इंजिनियर या वकील बन गया तो वो अपनी संतान को किसी भी अन्य डॉक्टर या वकील की तरह पाल पोस कर बड़ा कर सकता है। वह निश्चय ही यदि धनाढ्य वर्ग का न भी हुआ तो भी अपेक्षित या शोषित तो नहीं है । इस के बाद भी अपनी जति कि दुहाई देकर इस व्यक्ति कि संतान किसी और ज़रूरत मंद / मेधावी छात्र कि योग्यता को ठेंगा दिखा कर आगे बढ़ जाता है। उच्चतम न्यायालय ने सरकार को पिछड़ी जाति के उन लोगों कि सूची बनने को कहा है जो कि आरक्षण का लाभ ले चुके हैं। सोच अच्छी है, पर इतना साहस किसी राजनैतिक दल में दिखाई नही देता कि वह यह कार्य करने कि गलती करे। आरक्षण के एक प्रश्न पर सत्ताधीशों के सिंहासन डोल जाते है। यदि आरक्षण का लाभ पिछडों के ऊँचे वर्ग से निकल कर आम जनता तक पहुँच गया तो आरक्षण का औचित्य ही समाप्त हो जायेगा। आरक्षण का औचित्य भारत के राजनैतिक परिदृश्य में तभी तक है जब तक इस का लाभ उन्हें नहीं मिलता जिनके लिए ये बनाया गया है। तभी तक आरक्षण का झुनझुना बजा कर इस भीड़ को एक दिशा में एक साथ हांका जा सकता है। कभी कभी इस झुंड पर अपना हक जताने में बहुत हास्यास्पद हरकतें कर डालते हैं। जैसे कुछ दिन पहले एक राज्य की मुख्यमंत्री ने दुसरे दल के युवा नेता पर आरोप लगाया था कि वो दलित लोगों से मिलने के बाद स्नान करता है। सरकार आरक्षण को सभी दाखिलों और नौकरियों में लागू करना चाहती है। लेकिन इसका औचित्य तभी पूरा होगा जब २७ % आरक्षण के अनुसार भारत के प्रधान मंत्री का पद हर पाँच साल में सवा साल के लिए ओ बी सी वर्ग और सवा साल के लिए अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए हो। इसी प्रकार देश के सभी राजनैतिक दलों को अपने दलों के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ बंद कर के उसकी जगह अपनी कार्य कारिणी में ५० % आरक्षण का प्रावधान रखना चाहिए। और चूँकि ये आरक्षित पद हैं तो इन पर लोगों को उनके राजनीतिक अनुभव या सेवाओं के बल पर नहीं, बल्कि जाति के आधार पर रखा जाना चाहिए। सबसे पहले इस दलों को अपने यहाँ काम करने वालों में से जाति के आधार पर चुन कर कर बिना राजनैतिक अनुभव के लोगों को कार्यकारिणी के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन करना चाहिए । शायद ये लोग हमें एक बेहतर भारत दे पाएं। और आरक्षण का औचित्य भी पूरा हो जाए।

Saturday, September 22, 2007

राम सेतु !!

जीजस' मरने के बाद भी ज़िंदा हो सकते हैं....'बाइबल' के हिसाब से हड़प्पा-मोहनजोदाड़ो झूठ हो सकते हैं ... 'मोहम्मद साहिब' से फ़रिश्ते मिलने आ सकते हैं ...पर राम और कृष्ण पृथ्वी पर आएँ हो ये कैसे संभव है....?
हम अपनी ही नींव खोदने में आनंदित होते हैं... असल में ये भारतीयों की महान बनाने की कोशिश है...क्योकि हमने बचपन में पढ़ रखा था ,"स्वयं में बुराई खोजने वाला व्यक्ति महान होता है."
समुद्र में डूबी हुई द्वारीका नगरी के अवशेष मिलते हैं जो 4-5 हज़ार साल पुरानी बताई जाती है तो हम कहते हैं...'हाँ ॥"शायद" ये कृष्ण की नगरी ही हो'..अब यहाँ भी "शायद"... हमें पता लगता है आज से 4000 साल पहले यमुना वहीं से बहती थि..जिसका वर्णन महाभारत में है... या सरस्वती नदी जिसका वर्णन बस पुराणों में है... पुरातत्त्व विभाग(ASI) उसको भी मानता है तब भी हम "शायद" कहते हैं...
आइए गड़बड़ी कहाँ से शुरू हुई उस तक हम जाएँ....हमारे प्राचीन ग्रंथ जो बस 5000 साल पुराने माने गये...एस क्यों..? हमने अपने ग्रंथों को लिख कर कम रखा.... पीढ़ी दर पीढ़ी कंठस्थ कर ग्रंथों को जीवित रखा गया ...
असल में हमने इतिहास लिखना बहुत बाद में सीखा.... और एक घटना पे लिखा गया तो अलग अलग लोगों ने अपनी समझ अनुसार.....एक बात वाल्मीकि जी ने अपने हिस्साब से लिखी तो अगस्त मुनि ने अपने.... बहुत बाद आए तुलसीदास जी ने अपने... या रामदास जी ने अपने। हिसाब से कहा॥ अब अलग अलग कहा तो हो गये मतभेद...
मैने पहले भी कहा हमारे शास्त्र कव्यात्मक हैं.. और काव्य में सीधे बात कहने का प्रावधान नही है...बात का सार लिया जाता है.....अगर रावण को संपूर्ण संसार का स्वामी कहना हो...तो दशों दिशाओं से जोड़ के..'दशानन' कह दिया गया...
और काव्य को प्रभावशाली बनाने के लिए सच और झूठ का मिश्रण करते है जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दे....
राम से संबंधित साहित्य में एसा ही हुआ॥ और आज हम सच को झूठ॥या कोई कोई झूठ को सच मानने पर आमादा हैं.... हाँ बहुत सी बातें(जैसे अस्त्र शास्त्र का वर्णन) काल्पनिक लगता है...उन पर विश्वास करना मुश्किल है...पर मुग़ल तोप लेकर भारत आए तो हमने ये भी तो विश्वास नही किया की भला एसा भी हो सकता है की कोई नली आग उगले..

हम अपनी बात साबित नही कर पाते है भले ही ASI को खोदाइयों में अवशेष मिलते रहें...

जैसे ये बोला जाए की जीजस ने कश्मीर की घाटियों में अपना शरीर छोड़ा था... क्रिसचन समुदाय को बुरा लगेगा... स्वाभाविक है.. आस्था पर प्रश्न है...
पर हिंदुओं की आस्था??उस पर सवाल खड़ा क्यों करते है...? ऐसे सवाल उठा कर हिंदू मान्यताओं,भावनाओं से खिलवाड़ करना है...
राम सेतु सच है या या काल्पनिक.... हम तो कहते है....कि राम-सेतु निर्माण में समुद्र ने भी सहायता की थी... अब अगर वो समुद्र द्वारा निर्मित निकले तब भी...ऱाम के अस्तित्व पर प्रश्न नही उठता ...!
नरेंद्र कोहली जी ने एक लेख में कहा था "भारत में सबसे जयदा शोषण हिंदुओं का हुआ है."
ग़लत तो नही है...
राम सेतु का हज़ारों करोड़ों का प्रॉजेक्ट अब रुक जाए तो करोड़ों रुपया डूब जाएगा..
और ना रुके तो क्या डूबेगा?हम?? न हम तो छिछले पानी में तैर रहे हैं॥

-गौरव

Wednesday, September 5, 2007

" पत्रकारिता : एक सुनहरा भविष्य ??? "

आज कल पत्रकार बनने की होड़ लगी हुई है, और लोगो की इस अभिलाषा को पूरा करने पत्रकारिता के कालेज कुकुरमुत्तों की तरह खुल गए हैं,आइये पत्रकार और पत्रकारिता में भविष्य के सुनहरी संभावनाओ को तलाशें॥


पत्रकार कौन होते हैं?..वे लोग जिनकी गाड़ियों पे 'प्रेस' लिखा होता है,वे इस ख़ुशफ़ेहमी(और ग़लतफहमी) में रहते हैं की वे बड़े क्रियेटिव हैं और पूरे समाज के 'सुधार का ठेका' उनके कंधों पे है, और जब कंधे दुखने लगते हैं तो वे शराब के ठेकों पर नज़र आते हैं। पत्रकार बनने की पहली शर्त है,आपको चिकेट चाय और गालियाँ पकाना और पचाना आना चाहिए। आप में योग्यता का 'य' अथवा क़ाबलियत का 'क' न हो किंतु आपके पास 'बड़े-बड़े सोर्से' होना आती आवश्यक है। अगर आप एनजीओ से (NGO) जुड़ें हों तो लोग आपको सुनहरे पंखों वाला पत्रकार समझेंग।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इलेक्ट्रों में काफ़ी समानता होती है दोनों में ऋण आवेश होता है । अच्छे-अच्छे प्रोटान यहाँ इलेक्ट्रों ,नहीं तो न्योट्रांन में तब्दील हो गये. मीडिया में जो प्रोटॉन दिखते हैं सुकचम अध्ययन में वो भी नही हैं।
सो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सुनहर भविष्ट संजाओने वालों का भगवान ही मालिक। आप भले पॉलिटिक्स की बारीक समझ रखते हों,अरुणाचल प्रदेश के कृषी मंत्री तक का नाम जानते हो ,पर भूत-पिशाच पर रिपोर्ट देने को तैयार रहें।
ग़लती से भी किसी स्टिंग ऑपरेशन टीम का हिस्सा न बनें,यहा मेहनत कोई करता है क्रेडिट कोई और लूटता है।
वैसे स्टिंग ऑपरेशन दिखाने के हज़ार और न दिखाने के लाखों मिलते हैं ,पर आपको मेहनताना वही दिया जाएगा,
मतलब आपकी इमानदारी और बेईमानी का मूल्य बराबर हुआ।

इंग्लीश प्रिंट मीडिया को अपना भविष्य बनाने वाले लोग ख़ुशकिस्मत है..वो इतना कमा सकते हैं की अपने मोबाइल रीचार्ज करा सकें और महीने की शुरुआती दिनों में अपने गाड़ियों में पेट्रोल भरवा सकें,
इसलिए इनमे 'पत्रकारिता का कीड़ा' काफ़ी वक़्त तक ज़िंदा रहता है।
हिंदी प्रिंट मीडिया में नये लोगों को 6-7 वरसों तक अपने पूर्वजों के धन पर आश्रित रहना पड़ता है। कुछ विरले ही होते हैं जो तीन अंक के आकड़ों में सॅलरी ,साल भर में कमाने लगते हैं । सामान्यता सालों तक लोग मुफ़्त में काम करते हैं अब जब पैसा न कौड़ी तो भाई हिंदी प्रिंट मीडिया में कोई क्यो जाए?..बस लोग जातें हैं 'भोकाल' में .शान से गाड़ी में प्रेस(Press) लिखवाते हैं और भोकाल में बताते हैं हम 'फलाँ समाचार पत्र' के पत्रकार है।
वैसे पत्रकार बनाना तो एक सर दर्द है,पर उससे बड़ा सरदर्द है 'पत्रकार बने रहना' ।

आप में राईटिंग स्किल्स है तो एसा नहीं आप कुछ भी लिख सकते हैं?यहाँ एसी-एसी स्क्रिप्ट लिखने को मिलेगी आप लिखना भूल सकते हैं और हाँ अपनी क़ाबलियत का ढिंढोरा न पीतें ,आप काम के अतरिक्त बोझ के साथ साथ अपने सह पत्रकारों के आँखों की किरकिरी बन जायंगे. और इतने काबिल न दिखिए कि आपका सीनियर बेवकूफ़ लगाने लगे . अगर आपको मीडिया का हिस्सा बने रहना है तो ये जानते और मानते हुए कि आपका सीनियर बेवकूफ़ है उसपे ये बात ज़ाहिर न करें उनकी प्रशंसा के पुल बाँध दें .
सीनियर पत्रकारों से डिबेट,वाद-विवाद करें पर उन्हें ही जितने का मौका दें। अगर एक डिबेट में आपके जीत का सूरज उग गया तो अपके पत्रकारिता का भविष्य अन्धकारमय हो सकता है।
इतना पढ़ाने के बाद अप में पत्रकार बनने या बने रहने कि इच्छा है तो यकीं मानिए आप पत्रकार बन सकते हैं

शुभकामनाओं सहित।

-गौरव