Monday, September 15, 2008

आडवाणी जी आप से तो ऐसी उम्मीद नहीं थी

एक और बम विस्फोट से देश की राजधानी दहल उठी। इस विस्फोट में २४ लोग असमय काल के गर्त में समा गए। लोकतंत्र के चारों पहियों ने घुमना शुरू किया। सत्ता पक्ष अपनी जिम्मेदारियों बचता नजर आया तो विपक्ष ने आनन फानन में सत्ता पक्ष को चुनाव की चुनौती दे डाली। देश के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवानी ने विस्फोटों के बीच एक और विस्फोट कर दिया। जहां गृहमंत्री अपने परिधान बदलते रहे वहीं पूर्व गृहमंत्री भी अपने आगामी भविष्य के सुनहरे सपने बुनने शुरू कर दिए। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी अपनी जिम्मेदारी के निर्वाह में लग गया। कुकरमुत्ते की तरह फैले अपने नेटवर्क को सक्रिय कर 'ब्रेकिंग न्युज` का सिलसिला चल पड़ा। अखबारों केआफिस में फोन घिनघिना लगे और पेज भरे जाने लगे और थाे़डी ही देर में मानवीय संवेदनाएं बाजार में बिकने के लिए तैयार की जाने लगीं। अगले दो एक हफ्ते तक का मैटर मिल गया। पर इन सबके बीच जो एक बात सामने आई सभी ने इस बहती गंगा में अपने हाथ धोए। पिछले पांच दशकों तक देश की राजनीति में सक्रिय लाल कृष्ण आडवाणी ने ऐन मौके पर बयान देकर अपने दामन पर दाग लगा लिया है। जब एक ऐसा संदेश देने की जरूरत थी कि आतंकवादियों के हौंसले परास्त होते, ऐसे समय आडवाणी अपनी महत्वाकांक्षाआें की पूर्ति की योजना का अंजाम दे रहे थे। इस कारण अब हमें सोचने की आवश्यकता है कि या हम देश की बागडोर ऐसे गैरजिम्मेदार व्यि त को देने जा रहे हैं जो समय की मांग भी नहीं समझ सकता। निश्चित रूप से हमें यह कहना पड़ेगा कि आडवानी जी हमें आप जैसे वरिष्ठ नेता से यह उम्मीद नहीं थी।