Saturday, September 22, 2007

राम सेतु !!

जीजस' मरने के बाद भी ज़िंदा हो सकते हैं....'बाइबल' के हिसाब से हड़प्पा-मोहनजोदाड़ो झूठ हो सकते हैं ... 'मोहम्मद साहिब' से फ़रिश्ते मिलने आ सकते हैं ...पर राम और कृष्ण पृथ्वी पर आएँ हो ये कैसे संभव है....?
हम अपनी ही नींव खोदने में आनंदित होते हैं... असल में ये भारतीयों की महान बनाने की कोशिश है...क्योकि हमने बचपन में पढ़ रखा था ,"स्वयं में बुराई खोजने वाला व्यक्ति महान होता है."
समुद्र में डूबी हुई द्वारीका नगरी के अवशेष मिलते हैं जो 4-5 हज़ार साल पुरानी बताई जाती है तो हम कहते हैं...'हाँ ॥"शायद" ये कृष्ण की नगरी ही हो'..अब यहाँ भी "शायद"... हमें पता लगता है आज से 4000 साल पहले यमुना वहीं से बहती थि..जिसका वर्णन महाभारत में है... या सरस्वती नदी जिसका वर्णन बस पुराणों में है... पुरातत्त्व विभाग(ASI) उसको भी मानता है तब भी हम "शायद" कहते हैं...
आइए गड़बड़ी कहाँ से शुरू हुई उस तक हम जाएँ....हमारे प्राचीन ग्रंथ जो बस 5000 साल पुराने माने गये...एस क्यों..? हमने अपने ग्रंथों को लिख कर कम रखा.... पीढ़ी दर पीढ़ी कंठस्थ कर ग्रंथों को जीवित रखा गया ...
असल में हमने इतिहास लिखना बहुत बाद में सीखा.... और एक घटना पे लिखा गया तो अलग अलग लोगों ने अपनी समझ अनुसार.....एक बात वाल्मीकि जी ने अपने हिस्साब से लिखी तो अगस्त मुनि ने अपने.... बहुत बाद आए तुलसीदास जी ने अपने... या रामदास जी ने अपने। हिसाब से कहा॥ अब अलग अलग कहा तो हो गये मतभेद...
मैने पहले भी कहा हमारे शास्त्र कव्यात्मक हैं.. और काव्य में सीधे बात कहने का प्रावधान नही है...बात का सार लिया जाता है.....अगर रावण को संपूर्ण संसार का स्वामी कहना हो...तो दशों दिशाओं से जोड़ के..'दशानन' कह दिया गया...
और काव्य को प्रभावशाली बनाने के लिए सच और झूठ का मिश्रण करते है जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दे....
राम से संबंधित साहित्य में एसा ही हुआ॥ और आज हम सच को झूठ॥या कोई कोई झूठ को सच मानने पर आमादा हैं.... हाँ बहुत सी बातें(जैसे अस्त्र शास्त्र का वर्णन) काल्पनिक लगता है...उन पर विश्वास करना मुश्किल है...पर मुग़ल तोप लेकर भारत आए तो हमने ये भी तो विश्वास नही किया की भला एसा भी हो सकता है की कोई नली आग उगले..

हम अपनी बात साबित नही कर पाते है भले ही ASI को खोदाइयों में अवशेष मिलते रहें...

जैसे ये बोला जाए की जीजस ने कश्मीर की घाटियों में अपना शरीर छोड़ा था... क्रिसचन समुदाय को बुरा लगेगा... स्वाभाविक है.. आस्था पर प्रश्न है...
पर हिंदुओं की आस्था??उस पर सवाल खड़ा क्यों करते है...? ऐसे सवाल उठा कर हिंदू मान्यताओं,भावनाओं से खिलवाड़ करना है...
राम सेतु सच है या या काल्पनिक.... हम तो कहते है....कि राम-सेतु निर्माण में समुद्र ने भी सहायता की थी... अब अगर वो समुद्र द्वारा निर्मित निकले तब भी...ऱाम के अस्तित्व पर प्रश्न नही उठता ...!
नरेंद्र कोहली जी ने एक लेख में कहा था "भारत में सबसे जयदा शोषण हिंदुओं का हुआ है."
ग़लत तो नही है...
राम सेतु का हज़ारों करोड़ों का प्रॉजेक्ट अब रुक जाए तो करोड़ों रुपया डूब जाएगा..
और ना रुके तो क्या डूबेगा?हम?? न हम तो छिछले पानी में तैर रहे हैं॥

-गौरव

3 comments:

vikasgoyal said...

गौरव के कथन से मैं पूरी तरह सहमत हूँ। राम सेतु का प्रश्न सिर्फ व्यापर और वाणिज्य से जुडा हुआ नहीं है। इस से और भी बातें जुडी हुयी हैं। यह बात स्पष्ट है कि हमे इतिहास को लिपिबद्ध करना नहीं आया, इसलिए आज हमारी प्राचीनता पर ही प्रश्न चिह्न लगाने का प्रयत्न किया जा रहा है। समुद्र में एक प्राचीन सेतु कि आड़ में राम के अस्तित्व पर प्रश्न उठ रहा है। यदि यह मान भी लिया जाये कि इस सेतु के रामायण काल से संबंधित होने के कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, तब भी इस से जुडी हुयी जन मानस की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए इसे तोड़ने का विचार त्याग देना चाहिऐ। और जहाँ तक इतिहास की बात है तो सबसे पहला प्रश्न दिमाग में यही आता है की इतिहास की परिभाषा क्या है। इतिहास को हमेशा से सत्ताधीशों ने अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ कर पेश किया है। बचपन में पाठ्यक्रम के लिए जो किताबें रटाई गयी थी, जिनका औचित्य सिर्फ इतना था की आप पास होने लायक अंक लेकर अगली श्रेणी में पहुंच जाओ क्या वही इतिहास था? पश्चिम में इसे कहता हैं catch them young. यानी की बचपन में आप को जो पढ़ दिया जाये वही आप के लिए सत्य है। यह एक निर्विवाद सत्य है की भारत की गौरव पूर्ण विशाल संस्कृति, अतुल ऐश्वर्या, सब कुछ विश्व की क्षणभंगुरता के समान अतीत की वस्तु बन चूका है परन्तु, साथ ही यह बात भी सामने आती है की राम सेतु अथवा राम के अस्तित्व पर प्रश्न आज क्यों उठाया जा रहा है? इतिहास को नकारने की कोशिश इसलिए की जा रही है क्यूंकि कुछ लोगों ने इसे अपने राजनीतिक अस्तित्व का प्रश्न बना लिया है। हज़ारों करोड़ रुपये की योजना है तो ज़ाहिर सी बात है की राजनीतिज्ञों के लिए महत्व पूर्ण होगी ही। लेकिन क्या बामियान की बुध प्रतिमा का खंडन कर के तालिबान गौतम बुध की वैधता को मिटा पाया है? यहाँ आस्ट्रेलिया में एक विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है- Blue Mountains, जहाँ पर तीन पहाड़ एक साथ हैं जो कि किम्वदंतियों के अनुसार तीन बहने हैं। कहते हैं कि कई हजार साल पहले एक जद्दूगर ने अपनी तीन बेटियों को राक्षस से बचने के लिए पत्थर का बना दिया और खुद पक्षी बन कर वह से भाग निकला। पर इसी ऊहापोह में उस कि जादू कि छड़ी गम हो गयी। आज भी वह अपनी बेटियों को जिलाने के लिए अपनी छड़ी ढूंढ रहा है। कहानी काल्पनिक लगती है, लेकिन यहाँ आने वाले सभी पर्यटकों को बाकायदा सुनाई जाती है। इन पहाडों को Three Sisters कहा जाता है। जब ३०० साल पहले आस्ट्रेलिया आये अंग्रेजो ने इस तरह कि कहानी पर प्रश्न चिह्न नहीं लगाया, जब पाकिस्तान में आज तक कितने ही प्राचीन हिन्दू मंदिर और ननकाना साहब के गुरुद्वारे हैं( भले ही वे देखभाल कि कमी से खंडित और जर्जर हैं) तो भारत में राम के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न क्यों लगाया जा रहा है? क्योंकि ऐसा मान लिया गया है कि इस देश में आप कुछ भी कह कर साफ बच निकलते हैं। प्रश्न यह नहीं है कि राम सेतु किसने बनाया और कब बनाया। प्रश्न यह है कि इस से जनसंख्या के बहुत बडे भाग कि मान्यताएं और भावनाएं जुडी हैं। और यदि राजनीतिक तर्कों से देखा जाए तो कुछ ही दिनों में वैष्णो देवी और कामाख्या मंदिर को भी किसी परियोजना में ध्वस्त किया जा सकता है, क्योंकि इनके देवी के स्थान होने का भी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

Ankur said...

'Ram Se Tu Hai' (Your very existence is due to God's will. In other words, we are His creation).

I do not see any reason for why science or archaeology should intrude into such matters.
Creation of any religious scripture has some larger purpose behind it. So let us not challenge the authority of our scriptures.

Let me cite an example to show the limit, science at times, could impose on us. According to the laws of aerodynamics the bumble bee should never be able to fly. Because of the size, weight, and shape of its body in relationship to the total wing span, flying is scientifically impossible. The bumble bee, being ignorant of scientific theory, goes ahead and flies anyway. So, let us keep certain things outside the purview of science or archaeology.

Lastly, 'Sustainable Development' means reconciling our economic motives with our environmental concerns . We must not forget that 'religious or spiritual environment' is equally important for achieving true development of humanity.

..मस्तो... said...

ye lekh padh ke log mujhe RSS aur VHP ka maan ne lage hain.. :P